Changes

धरती की जीवन धाराओं में मत घोलो और गरल
विष वल्लरी उगायी जो है उसे न और बढ़ओ बढ़ाओ तुम।
जागो जागो भैतिकता की निद्रा से जागो मानव!
टपने अपने भावी जीवन की रक्षा का साज सजाओ तुम।
जगह जगह पर पेड़ लगाओ जल बरसाओ सुख पाओ
किन्तु लोभ की सीमाओं से पहले बाहर आओ तुम।
सस्यष्यामला शस्य श्यामला वसुन्धरा ने संस्कृति को पाला पोसा आम, नीम, तुलसी, बरगद, पीपल पर अघ्र्य अर्घ्य चढ़ाओ तुम।
हरियाली है खुशहाली-, खुशहाली ही हरियाली है
मैं हूँ पर्यावरण तुम्हारा मुझको शीघ्र बचाओ तुम।
</poem>
352
edits