{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवधेश कुमार
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
शहर में भालू आया
आलू लाया
पहाड़ से
शहरियों के लिए
औरतों के बदले में
आलू के बदले
औरतें देना आसान है
भालू को शहरियों के लिए ।
नाच दिखाया उसने
गश्त लगाई
गलियों में झाँका खिड़कियों के भीतर
पालनों में ।
अब पसन्द है उसे
नवजात शिशु
आलू के बदले
भालू को
अब दे रहे हैं नवजात शिशु शहरिए
आलू के बदले ।
सूँघने की शक्ति हो गई है तेज़ भालू की
नाक की
नाक को ऊपर घूमता है
सारे शहर में
भालू ।
भालू आया - भाला आया
आलू लाया - आलू लाया
(हर्ष चारों ओर घनघोर छाया)
नवजात शिशु सुनता है यह गाना
माना — उसके लिए यह बेमानी है
जब भी कोई नवजात शिशु आता है
नाक से ख़बर पहुँचती है भालू आता है ।
नाक हो गई है अत्यधिक सम्वेदनशील
भालू की
नाक भालू हो गई है
धड़ाक !
एक हल्का
कोमल प्यारा छोटा-सा
मगर कसकर मुक्का मारता है
नवजात शिशु भालू की नाक पर ।
पीड़ा से तिलमिलाता है भालू
आलू लेकर वापस भागा
वापस पहाड़ पर ।
शहर सुनसान है
ख़ाली मकान है
केवल एक नवजात शिशु
खोल रहा है
अपनी मुट्ठी !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader