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दिल्ली(कविता) / रामधारी सिंह "दिनकर"
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8 जुलाई
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यह कैसी
चांदनी
चाँदनी
अम के मलिन तमिर की इस गगन में,कूक रही क्यों नियति
व्यंग
व्यंग्य
से इस गोधूलि-लगन में?
मरघट में तू साज रही दिल्ली कैसे
श्रृंगार
शृंगार
?
यह बहार का स्वांग अरी इस उजड़े चमन में!
वीरबाला
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