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01:02, 31 जुलाई 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ध्रुव शुक्ल
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
बीती सदियाॅं पाॅंच
साॅंच को कैसे आए आँच
कह गए महाकवि —
दूसरे कवियों की कविता सुनकर
जो होते हैं हर्षित
कम होते हैं जग में ऐसे कवि
निज कवित्त ही लगता नीका
सरस होय अथवा अति फीका
जैसे नारी किसी नारि के
मोहित होती नहीं रूप पर
कवि अपनी कविता पर रीझें
कवि मित्रों की कविताओं पर
कवि ही नहीं पसीजें
फॅंसे हुए कवि
विश्व तरंग जाल में
क्षीण हुई कविता की धारा
हृदयताल में
श्रोता-वक्ता-ज्ञाननिधि
हुए सब इण्टरनेटी
बिसर गए सब छन्द-बन्ध
केवल रह गई चैटी
</poem>
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