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|रचनाकार=सुरंगमा यादव
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श्री राम भवन में पधारे
लो जागे भाग्य हमारे
मन मुदित हुए हैं सारे
आनंदघन चहुँदिसि छाए हैं
राम आए हैं राम आए हैं
सज गई अयोध्या सारी
झूमे- नाचें नर- नारी
अँखियाँ जाएँ बलिहारी
श्री राम ने दरश दिखाए हैं
राम आए हैं राम आए हैं
झुक रही सुमन की डाली
चलती है हवा निराली
त्रेता-सी जगी दिवाली
मन- देहरी दीप सजाए हैं
राम आये हैं राम आए हैं
सदियों से आस लगाई
शुभ बेला तब ये आई
अपलक है दृष्टि लगाई
प्रभु बाल रूप दिखलाए हैं
राम आए हैं राम आए हैं।
</poem>