पुरवैया के हिलकोरों से
क्यों इतना इठलाता बादल ?
मस्ती के आलम में किसपरूना किसपरघुमड़ - घुमड़ घिर जाता बादल ?
अन्तर में ग्रीष्म जलता
नन्हे से जीवन में उठकर
आज हिलोरें लेता यौवन
जिसमें खेल रहा चपला - सा
एक लकीर लिए अपनापन
अपनी क्रीड़ा से भर देता
देख तुम्हें कुछ पास हृदय के
धुँधला - सा छा जाता बादल ?
मुँदते सरसिज - रवि पर पागल
अलिदल - से बादल मड़राए
छलकाते - से उर का मधुरस
किरन - पँखुरियों पर घिर आए
घुँघराली घन - सी अलकों पर
किसके हृदय नहीं लहराए
अधरों पर तड़पन, आँसू बन
पल - पल मरने ही मिटने में
बिता दिया दी यह भारी जवानी
बन्धन में प्राचीर पवन के
उम्र कटी, खो गई रवानी