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उत्तराधिकार / सुनील गंगोपाध्याय / सुलोचना
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,
8 सितम्बर
एक नदी, दो-तीन देश, कुछ नारियाँ —
यह सब हैं
मेरे पुराने पोशाक
मेरी पुरानी पोशाकें
, बहुत प्रिय
थे
थीं
, अब शरीर मेंतंग हो कसने
लगे
लगी
हैं, नहीं
शोभते
शोभतीं
अब
तुम्हें दिया, नवीन किशोर, मन हो तो अंग लगाओ
या घृणा से फेंक दो दूर, जैसी मरज़ी तुम्हारी
अनिल जनविजय
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