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12:49, 9 सितम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रवि सिन्हा
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<poem>
मेरे होने से बे-ख़बर होगा
क्या ये गैहान बे-बसर होगा
इक धमाके में जो हुआ पैदा
उस पे चीख़ों का क्या असर होगा
ख़ाक अबजद ख़ला तसव्वुर है
कहाँ दीवान मुश्तहर होगा
जो समूचा है जो मुसलसल है
उसका फैलाव अब किधर होगा
इन लकीरों में शक्ल उभरेगी
उन लकीरों में दीदावर होगा
कारवाँ है तो रहगुज़र भी है
इस बियाबाँ में यूँ सफ़र होगा
ये कहानी तवील है लेकिन
मेरा किरदार मुख़्तसर होगा
'''शब्द-अर्थ'''
गैहान – जगत (universe);
बे-बसर – अंधा (blind);
अबजद – वर्णमाला (alphabet);
ख़ला – शून्य, अन्तरिक्ष (space);
तसव्वुर – कल्पना (imagination);
मुश्तहर – प्रसिद्ध (advertised);
दीदावर – देखने वाला, पारखी (sharp-sighted, perceptive);
तवील – लम्बी (long);
किरदार – भूमिका, चरित्र ( );
मुख़्तसर – छोटा (short)
</poem>