Changes

घास / प्राणेश कुमार

825 bytes added, 19:43, 18 सितम्बर 2024
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्राणेश कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्राणेश कुमार
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
रेत में भी जरा-सी नमी पाकर
जम जाती हैं ये
पाँव के नीचे
मखमली अहसास बन
गुनगुनाती हैं ये
इनके बिना
धरती बेजान हो टूटकर
वीरान लगने लगती है।
उखाड़ दो
छील दो नुकीले औजारो से
फेंक दो
जला दो अग्निकुंड में
फिर भी उगेंगी ये धरती की हरियाली बनकर
जीवन से भरी-भरी।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
16,500
edits