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15:12, 24 सितम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=नामवर सिंह
|अनुवादक=
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<poem>
जम गई सी रात, तम, थम - सी गई बरसात
बिजलियों के तार अँटकी सीकरों की पाँत
बात मन की घुमड़ती जैसे चबाई बात
छाँह चलती कभी आगे, कभी पीछे, साथ
हुई सहसा छाँह दो, दृग मुड़े पीछे, आह
रोशनी हँस उठी, फड़के पँख, खड़के पात ।
</poem>