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पटकथा / पृष्ठ 4 / धूमिल

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और तुम पेड़ों की छाल गिनकर
भविष्य का कार्यक्रम तैयार कर रहे हो
तुम एक ऐसी जिन्दगी ज़िन्दगी से गुज़र रहे हो
जिसमें न कोई तुक है
न सुख है
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