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और तुम्हारे मुखमण्डल पर गहराती जाती दिन पर दिन
जो विषाद की रेखाएँ थीं —
हाँ, उनको भी प्यार किया था; और प्रिये, फिर लाल सलाख़ों (किरणों) के सम्मुख थोड़ा - सा झुककरकुछ उदास हो जाना, फिर होंठों जी होंठों कहनाकैसा तो था प्यार; कर गया सूना जीवन कितनी जल्दी जाकर गिरिशिखरों के ऊपरतारों के समूह में उसनेछिपा लिया मुखमण्डल अपना !
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
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