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6 अक्टूबर {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=ज्योति पांडेय
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<poem>
रात्रि की प्रतीक्षा से, रात्रि के आने के बीच के अंतराल में
बन्द रखना आंखें...
तेज रोशनियों के समय में बंद आंखें ही स्वप्न बचाएँगी!
हमें अंधकार ही बचाएगा पूर्णिमा जैसी रातों में
और मौन बचा ले जाएगा हमारे जमा शब्द!
केश बचा रखेंगे आखिरी तरलता
हाथ बचा लेंगे पूर्व जन्म के स्पर्श
मेरा मेरी जगह पर होना
बचा ले जाएगा मेरा होना
कहीं और!
यूं तो बचाने को बहुत कुछ है
परंतु मैं बचाना चाहूँगी, कुछ भी देख न पाना...
देखना त्रासदी है
तुम बिना देखे चुनना
रात्रि
प्रेम
मृत्यु!
</poem>