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13 अक्टूबर {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=काजल भलोटिया
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|संग्रह=
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<poem>
गुंजयीमान करते तुम
रोम रोम में समाये
भाव से परिपूर्ण
हमारा तुम्हारा सम्बन्ध देह से परे
धीरे धीरे घुल रहा है मेरी साँसों में
और अपने अंतस में असीम तृप्ति का अनुभव कर
तुम्हारे प्रेम को महसूसती मैं
जो किसी सुंदर राग की तरह
मेरे मन में गहरे पैठ गए हो
और मौन रहकर एक शांत वातावरण में
उद्धित हो मेरे भीतर वीणा के तार की तरह
झंकृत करते, मेरे अधूरेपन में
पूर्णता का आभास कराते तुम!
केवल तुम!
सुनो, एक बात कहूँ...
तुम्हारे इस मौनी प्रेम की तरह ही
मेरा प्रेम भी मौन ज़रूर है
मगर पूर्ण है!
</poem>