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अवशेष / को उन / कुमारी रोहिणी

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<poem>
जब मैं केवल बीस का था
जहाँ भी जिस ओर भी गया
खण्डहर ही खण्डहर, अवशेष ही अवशेष थे ।

रात में लगने वाले कर्फ़्यू के दिनों में
बिना नींद के, मैं अक्सर पाता था ख़ुद को जीवन से ज़्यादा मौत के क़रीब ।
वे किसी अन्य चीज़ में नहीं बदले थे,
और न ही उनका जन्म हुआ था एक नवजात शिशु की तरह रोने के लिए ।

मेरे सीने में चल रहा युद्ध समाप्त नहीं हुआ था ।

पचास साल बाद,
मैंने शहर में देखे खण्डहर ।
आज भी मेरा वजूद
इस दिखावटी शहर के खण्डहर में पड़ी ईंट के एक टुकड़े जैसा ही था ।

उन दिनों तेल से जलने वाली लालटेनें अब कहीं नहीं दिखाई पड़तीं,
लेकिन अवशेषों के बाद वाले सुनहरे दिन नहीं पहुँच सके हैं मुझ तक।

'''मूल कोरियाई भाषा से अनुवाद : कुमारी रोहिणी'''
</poem>
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