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|रचनाकार=नजवान दरविश
|अनुवादक=मंगलेश डबराल
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<poem>
ग्रहों के ढेर के बाद जब एक ब्लैकहोल
धरती को निगल लेगा
न इनसान बचेंगे और न परिन्दे
और विदा हो चुके होंगे तमाम हिरन और पेड़
और तमाम मुल्क और उनके हमलावर भी…

जब सूरज कुछ नहीं
सिर्फ किसी ज़माने के शानदार शोले की राख होगा
और यहाँ तक कि इतिहास भी चुक जाएगा,
और कोई नहीं बचेगा क़िस्से का बयान करने के लिए

या इस ग्रह और हमारे जैसे लोगों के
ख़ौफ़नाक ख़ात्मे पर हैरान रहने के लिए
मैं कल्पना कर सकता हूं उस अन्त की
उसके आगे हार मान सकता हूँ,

लेकिन मैं यह कल्पना नहीं कर सकता
कि तब यह होगा
कविता का भी अन्त ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल'''
</poem>
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