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14:13, 21 नवम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सुशांत सुप्रिय
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|संग्रह=
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<poem>
जूते-चप्पल
हमें कहीं नहीं ले जाते
हमें हमारी मंज़िल तक
ले जाते हैं हमारे हाथ-पैर
मैं नहीं चाहता हूँ
राम की चरण-पादुका-सा
पूजा जाना
मैं बलराम के हल-सा
खेत की छाती में
उतर जाना चाहता हूँ
</poem>