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05:45, 26 नवम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=अनामिका अनु
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<poem>
उसने कहा
तुम बहुत प्यारी हो आन्ना
और पृथ्वी सिकुड़ कर
एक शब्द बन गयी
उसने होंठों पर फेरी उंगलियाँ
नदी सिकुड़ कर एक लकीर बन गयी
उसने बालों को सहलाया
सारी पत्तियाँ झड़ कर एक पंक्ति
उसने हाँ कहा
उपेक्षाओं का पूरा आकाश
एक विलुप्त भाषा बन गयी
फिर एक दिन
उसने उठायी उँगली
उस दिन
सूरज-चाँद
बादल-आकाश
सब उठकर ऊपर चले गये
</poem>