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05:51, 26 नवम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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चुम्बकत्व है तुममें
तुम मानती नहीं
जबकि कितनी बार भौतिकी की कक्षा में
तीसरी डेस्क की बायीं बेंच पर बैठकर तुमने
बार-बार दुहराया है
गुरू जी के पीछे
कि
चुंबकत्व एक सार्वभौमिक परिघटना है
काश! मैं चीनी आख्यान का राजा ह्वें ती बन पाता
जिधर हाथ फैलाकर इशारा करता पुतला
उधर ही तुम होती
और मैं कुहासे में भी तुम तक पहुंच पाता
पृथ्वी चुंबक की तरह करती है व्यवहार
मैं चुंबक हूँ
काश तुम पृथ्वी हो सकती
तुममें होती उच्च चुंबकीय धारणशीलता और निग्राहिता
मैं तुम्हारे किसी वैचारिक ध्रुव से जुड़ सकने का
सुख भोग सकता था
तुम मानोगी नहीं
फिर भी कहता हूँ :
आन्ना! तुम्हारे गुरूत्व के समक्ष
मैं खड़ा होना चाहता हूँ
मैं एक शक्तिशाली चुंबक हूँ
तापीय उतार चढ़ाव
इधर- उधर के आकर्षण
और क्षुद्र यांत्रिक हानियों से अप्रभावित
तुम्हारी प्रतीक्षा अब कील सी चुभती है
मैं वेदना में सुख क्यों पा रहा हूँ?
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