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06:06, 26 नवम्बर 2024 {{KKGlobal}}
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<poem>
मैं तुम्हें ले नहीं जा पाऊँगी
मेरे घर में मछली और भात नहीं पकती है रोज
दूध भी रोज नहीं आता
हर दिन छककर खा पाना
मुश्किल है
तुम्हें क्या खिलाऊंगी?
अब्बा एक साल हुए लौटे नहीं
अम्मी को इस महीने भी काम नहीं मिला
स्कूल बंद है
दोपहर का भोजन भी
इस गेट पर कब तक मेरे साथ बैठी रहोगी
प्यारी बिल्ली?
तुम किसी की दीवार फांद
कहीं भी म्याऊं-म्याऊं कर मांग सकती हो
भोजन
तुम बिल से चूहे पकड़ कर खा सकती हो
बगल की खेत ,किसी के घर आंगन में जाकर
मैं मूली की इस खेत से
एक मूली उखाड़ कर खा लूं
तो पहरेदार चोर कहेगा
मैं म्याऊं-म्याऊं करूं
तो लोग पागल कहेंगे
पत्थर मारेंगे
और कोई भी ,कुछ भी खाने को नहीं देगा
तुम मेरे साथ बैठकर स्कूल और दोपहर के भोजन
की प्रतीक्षा छोड़ दो
तुम्हारे पास मुझसे अधिक विकल्प हैं
</poem>