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न्यारी-न्यारी धरती / नीरज दइया

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|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=पाछो कुण आसी / नीरज दइया
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita‎}}<poem>घणा दिन हुयग्या
दिन कांई !
घणा-घणा बरस हुयग्या
आपां मिल्या कोनी !

छोटी-सी धरती
तर-तर फैलती जावै
एक धरती माथै
बणायली आपां
आपां-आपां री
न्यारी-न्यारी धरती।
</poem>
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