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|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
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<poem>
छू मंतर हो गई उदासी
एक तुम्हारे आ जाने से ।

संवादों ने मन सहलाया
जो था तुम बिन निपट अलोना
सम्मोहन ने मूँदीं पलकें
परस तुम्हारा जादू टोना

बात बढ़ाई मन मनबढ़ ने
हौले टिके -टिके शाने से ।

गंध हवा की लहकी-बहकी
और तुम्हारा नेह निमंत्रण
इस ठीहे आ टूटे औचक
बरसों बरस निभाये जो प्रण

चाहत ने अनुबंध भरे फिर
लाज-शरम के तहखाने से ।

कौन रेह से धुल सकता है
रंग प्रेम का ऐसा चोखा
बिन वादों का बिन कसमों का
एक कथानक बिल्कुल ओखा

तुम मेरे फिर क्या मिलना है
दुनिया के खोने-पाने से ।
</poem>
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