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किरनें थकीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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[[Category: ताँका]]
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हवा क्या चली
बिखर गए सारे
मुड़कर देखा जो
मीत कोई ना साथ।
2
65
किरनें थकीं
घुटने भी अकड़े
काँपते हाथ-पाँव
काले कोसों है गाँव।
3
66
रुको तो सही
कोई बोला प्यार से-
वीरबाला
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