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{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=दहकेगा फिर पलाश / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
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<poem>
ख़ुशी से तर-ब-तर करने वह महकाने चमन आई।
सुनहरी गुनगुनाती भोर की पहली किरन आई।

दहकती धूप में बरसात बन हरने तपन आई।
लगा ऐसा कि रेगिस्तान में ठंडी पवन आई।

हवा लाई संदेशा थी, महर बोली अटारी पर,
परी नन्हीं फुकदती आज भाई के भवन आई।

तमन्ना दिल में उफनाई, बिना देरी पहुँच जायंे
मुहब्बत के सफ़र में कब कहो आड़े थकन आई।

दरो दीवार हैं झूमें, चहक ‘विश्वास’ उट्ठा है,
कलाई मुस्कुराई जब लिये राखी बहन आई।
</poem>
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