1,247 bytes added,
कल 18:56 बजे {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=उत्पल डेका
|अनुवादक=दिनकर कुमार
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
खोपड़ी के अन्दर एक पृथ्वी
चश्मे के बग़ैर भी नज़र आती है
हैरतअंगेज पृथ्वी
जो खेल हम खेल रहे थे
वह ख़त्म नहीं हुआ था
बड़े अक्षरों में लिखे विज्ञापन के पीछे
रहते हैं
छल के आँसू
इन्वेस्टमेण्ट में जीवन
लहू चूसना हमारा धर्म
शोषण और शासक की
हड्डी में उगे नंगे बच्चे
भूख से चीख़ते हैं
गैरों के मुँह से निवाला छीनकर
सुखी होने का खेल रोचक है
कुछ पा जाने का सुख मिलता है इसमें !
'''मूल असमिया भाषा से अनुवाद : दिनकर कुमार'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader