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जब भी भेंटती किसी नारी कोस्त्री से मुलाक़ात करती हूँ मैंमुझे लगताहैदो भाग हिस्सों में से एक भागहै वहतीन भाग हिस्सों में से एक भागहैया चार, पाँच, छह या सात भाग हिस्सों में से बस, एक भागहै वहपता नहीं कितने भाग हिस्सों मेंस्वयं को बाँटती।बाँट लेती जै वह।
पता नहीं उसका कौन सा भागहिस्साखड़ा होता है तब मेरे सामने!
केवल बाँटने नहीं
मुझे विकल करता, परेशान
जिसे अंश का एक भाग
दूसरे भाग को खोजता जा रहा।रहा । '''मूल ओड़िया भाषा से अनुवाद : शंकरलाल पुरोहित'''</poem>
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