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कलई उतर गई हुआ नंगा समाजवाद
सोचा तो क्या था मैंने क्या निकला समाजवाद
टोपी बराबरी की तो पहना दिया सबको
पर जेब सिर्फ़ अपनी भर रहा समाजवाद
 
जनता रहे भूखी मज़े लें दावतों के आप
देखा सुना नहीं कभी ऐसा समाजवाद
 
लड़ने का दम नहीं तो कटोरा लिए हुए
पूँजीपती के द्वार पे पहुँचा समाजवाद
 
सपने दिखा रहा है वो बस सब्ज़बाग़ के
लेकिन है हक़ीक़त में दिखावा समाजवाद
 
 
नेता से मिलके मैंने राज जान लिया है
फंडा है राजभोग तो झंडा समाजवाद
 
दावे थे सभी खोखले , अब पोल खुल चुकी
देखा है छद्म से भरा झूठा समाजवाद
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