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छोटी ही सही लेकिन अच्छी सी ज़िन्दगी हो
चाहे मिले नकद में चाहे वो उधारी हो
कैसे पता लगेगी क्या प्यार की है क़ीमत
भरपूर हो मिलन तो थोड़ा वियोग भी हो
 
माना कि संत हो पर हरकत बता रही है
तुम भी हो कुछ नशे में थोड़ी ही भले पी हो
 
लाज़िम यही है यारो सच्ची हो औ खरी हो
चाहे वो दुश्मनी हो चाहे वो दोस्ती हो
 
साथी न कोई होगा ढोना है अकेले ही
वो बोझ पाप का हो, गठरी या पुन्य की हो
 
लोगों के काम आओ मैं मानता हूँ लेकिन
इस भीड़ में कहीं पर अपनी भी ज़िंदगी हो
 
अपना ख़याल रखना बिल्कुल है ज़रूरी, पर
बच्चे बचाना पहले कहीं आग जब लगी हो
 
दुनिया से जब भी जाना यह बात याद रखना
तस्वीर छोड़ जाना जो बेशक़ीमती हो
</poem>
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