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|रचनाकार=भव्य भसीन
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<poem>
मेरे प्रेम में कमी न हो कहीं,
तुम मुझे सम्भालते रहना।
मेरे प्रिय मुझे प्यार करते रहना।
मेरी स्थिति असहनीय नित्य होती है,
मुझमें शक्ति रिक्त होती है,
मैं सर्वस्व झोंक कर रहता हूँ,
थक कर टूट जाऊँ तो मुझे माफ़ करते रहना,
पर मेरे प्रिय मुझे प्यार करते रहना।
न जाने कैसी पीड़ा है जिसका अनुमान नहीं था,
न जाने कैसी तृष्णा है जिसका भान नहीं था,
जब और देने योग्य न रहूँ,
मुझमें नयी शक्ति संचार करते रहना।
मेरे प्रिय मुझे प्यार करते रहना।
मुझे ज्ञात है कि मेरा तप तुम्हारी सेवा है,
मुझे विरहाग्नि का हर कष्ट सहना है,
सहते-सहते ढह न जाऊँ कहीं,
इतना तुमसे है कहना,
मुझे प्यार करते रहना।
मेरे प्रिय मुझे प्यार करते रहना।
</poem>