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|रचनाकार=रसूल हमज़ातफ़
|अनुवादक=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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<poem>
आज से बारह बरस पहले
बड़ा भाई मिरा
स्तालिनग्राद की जंगाह में
काम आया था

मेरी माँ अब भी लिए फिरती है
पहलू में ये ग़म
जब से अब तक है वह
तन पे रिदा-ए-मातम

और उस दुख से
मेरी आँख का गोशा तर है
अब मेरी उम्र बड़े भाई से
कुछ बढ़कर है

शब्दार्थ :
जंगाह = युद्धभूमि
रिदा-ए-मातम = शोक की चादर

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़'''
</poem>
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