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सोमवार को 17:20 बजे {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चन्द्र त्रिखा
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<poem>
इतनी दिलचस्प क्यों हयात मिली
दर्द की सारी क़ायनात मिली
सब के कंधों पर अपनी लाशें थीं
आज सूरज के घर में रात मिली
चाल जो भी चले गज़ब की चले
फिर भी अपने खिलाफ मात मिली
शहर सारा ही गुमशुदा-सा दिखे
खुद-फरेबी से कब निज़ात मिली
क्या बताएँ कि हमको क्या न मिला
आप की एक-एक बात मिली
</poem>