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फसल / केदारनाथ सिंह

No change in size, 14:45, 4 दिसम्बर 2008
उसकी एक छोटी-सी दुनिया थी
छोटे-छोटे सपनों
और ठिकरों ठीकरों से भरी हुई
उस दुनिया में पुरखे भी रहते थे
और वे भी जो अभी पैदा नहीं हुए