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प्रथम अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग २ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
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<span class="mantra_translation">
लाभान्वित हो मानवों तुम ज्ञानियों के ज्ञान से,<br>
तुम उठो जागो और जानो ब्रह्म विधान से।
<br>
यह ज्ञानं ब्रह्म का गहन दुष्कर, बिन कृपा अज्ञेय ही,<br>
ज्यों हो छुरे की धार दुस्तर, ज्ञानियों से ज्ञेय है॥ [ १४ ]<br><br>
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