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द्वितीय अध्याय / तृतीय वल्ली / भाग १ / कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति
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13:28, 5 दिसम्बर 2008
शेष मानव जन्म होने से पूर्व अति, अति पूर्व ही,<br>
यदि भजन साधक कर सके तो जन्म पाये अपूर्व ही।<br>
बिन भजन साक्षात्कार के,यह जन्म व्यर्थ है सिद्ध है,
<br>
पुनि विविध योनी लोक में, वह कल्पों तक आबद्ध है॥ [ ४ ]<br><br>
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