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करे गर्भ धारण प्रसव के ही पूर्व तक नारी तथा,<br>
जन्मांतरण शिशु के पिता , करें संस्कार की है प्रथा<br>
गर्भान्तरण नारी का पोषण श्रेष्ठ और विशेष हो ,<br>
अथ जीव का जन्मांतरण ही द्वितीय जन्म प्रवेश हो॥ [ ३ ]<br><br>
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यह पुत्र है प्रतिनिधि पिता का, पुण्य कर्मों को करे गर्भ धारण प्रसव के ही पूर्व तक नारी तथा,<br>जन्मांतरण शिशु के जिसके ही लौकिक दिव्य कर्मों से पिता , करें संस्कार की है प्रथाऔर कुल भी तरें<br> गर्भान्तरण नारी का पोषण श्रेष्ठ और विशेष पिता के कर्तव्य पूर्ण व् आयु भी जब शेष हो ,<br>अथ जीव का जन्मांतरण ही द्वितीय उपरांत जो भी पुनर्जन्म हो,तृतीय जन्म प्रवेश हो॥ [ ४ ]<br><br>
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मर्मज्ञ जीवन मरण के , ऋषि वाम देव को गर्भ में ही तत्व ज्ञान का ज्ञान थावामदेव प्रणम्य है,<br>जन्म मृत्यु उपरांत नष्ट शरीर के ही विकार हैं यह भान था,गति उर्ध्व पाई धन्य है.<br>अब तत्व ज्ञान से मैं शरीरों कामनाओं की अहंता से मुक्त हूँ को प्राप्त करके , आप्त काम हो तर गए,<br>अब वे जन्म मृत्यु शरीर हीन हूँ विहीन बन , बाज सम उन्मुक्त हूँ॥ ऋषि परम धाम को ही गए॥ [ ६ ]<br><br>
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