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ख़ून ऐसा मुँह लगा है, जंगलों को पार कर / पवनेन्द्र पवन
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,
04:42, 9 दिसम्बर 2008
‘आपका स्वागत है’ पढ़कर शहर की दीवार पर
खेत ,घर
,
खलिहान
अपना
अपने
तो जला
डाला गया
डाले गए
हम मगर बैठे ग़ज़ल लिखते रहे मल्हार पर.
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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