Changes

डरपत मन मोरा / सुधीर सक्सेना

457 bytes added, 14:50, 21 दिसम्बर 2008
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना }} <Poem> सुनो, आकाश में जब भी गरजते है...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुधीर सक्सेना
}}
<Poem>
सुनो,
आकाश में जब भी गरजते हैं मेघ,
कड़कती हैं बिजलियां
मेरा भी मन डरता है
ठीक तुम्हारी तरह
प्रिया से दूर हूं मैं
इंद्रप्रस्थ में एकाकी.
</poem