2,003 bytes added,
12:49, 29 दिसम्बर 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'
}}
[[category: गीत]]
<poem>
'''लेखन वर्ष: २००४
रातभर चाँद देखा किये
माज़ी में उड़ रहीं थीं
तेरी यादें समेटा किये
रातभर चाँद देखा किये
कभी हाथ से ढका चाँद को
कभी बादलों से उठाया भी
गदेली पर रखकर उसे
कभी होंटों तक लाया भी
रातभर चाँद देखा किये
माज़ी में उड़ रहीं थीं
तेरी यादें समेटा किये…
सितारे टूटते बुझते रहे
उनसे तुम्हें माँगते रहे
ख़ाली था ख़ामोश था लम्हा
हम तेरा नाम लिखते रहे
रातभर चाँद देखा किये
माज़ी में उड़ रहीं थीं
तेरी यादें समेटा किये…
रूह बर्फ़ में जलने लगी
साँस-साँस पिघलने लगी
तेरी तस्वीर देखकर
तन्हाई मसलने लगी
रातभर चाँद देखा किये
माज़ी में उड़ रहीं थीं
तेरी यादें समेटा किये…
सन्नाटों में बहता रहा
ख़ामोशी से कहता रहा
तुम कहाँ अब कैसी हो
मैं कोहरे सहता रहा
रातभर चाँद देखा किये
माज़ी में उड़ रहीं थीं
तेरी यादें समेटा किये…
</poem>