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बरसात / प्रयाग शुक्ल
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06:21, 1 जनवरी 2009
सहसा तन कर सीधे, आँखें फैलाते
जैसे किसी नए अनुभव की ओर
लगाएँ
लगाए
, कान भी। सुनते हुए बहुत-कुछ--
मेज़ पर रखी चाय के साथ
बैठे चुपचाप, सोचते क्या तुमने भी
अनिल जनविजय
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