|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
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<Poem>
वही जगह
जिसे कहूँ अपनी है ।
अपनों की--
जगह है ।
जँहा जब इच्छा हो
बुला सकूँ बीती स्मृतियों को
हँसे नहीं कोई ठठाकर
उन पर ।
जहाँ मैं रहूँ और कोई यह
कोशिश करे नहीं
तौलने-परखने की
क्या मेरी ताकत है,
मेरी उस जगह पर !
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