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धूल / प्रयाग शुक्ल

No change in size, 12:46, 1 जनवरी 2009
<Poem>
धूल में पड़ी रहती हैं बहुत सी चीज़ें ।
तिनके । टुकड़े कांच काँच के । उड़कर कहीं से
चले आये मकड़ी के जाले के तार ।
पंख । चिट्ठियों के अक्षर ।
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