गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
रात में वर्षा / प्रयाग शुक्ल
7 bytes removed
,
12:53, 1 जनवरी 2009
|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
}}
<poem>
गड़गड़ाते हुए
बादल
पेड़ तक, घर तक ।
हवा को भेजते
दर-दर ।
इधर, इस ओर
बिस्तर तक
जगा है--
चौंक कर ।
यह एक
बिजली-कौंध,
भीतर तक
उतर कर,
कहाँ जाने गई ।
ऊपर गड़गड़ाहट
गड़गड़ाहट
और कितनी !
तनी
साँसें
सुन रही हैं वृष्टि
अब भरपूर ।
</poem>
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits