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19:57, 5 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=शहरयार
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<poem>
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गये होते
इक पल अगर भूल से हम सो गये होते
ऐ शहर तिरा नामो-निशाँ भी नहीं होता
जो हादसे होने थे अगर हो गये होते
हर बार पलटते हुए घर को यही सोचा
ऐ काश किसी लम्बे सफ़र को गये होते
हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है
अजदाद1 कहीं पेड़ भी कुछ बो गये होते
किस मुँह से कहें तुझसे समंदर के हैं हक़दार
सैराब2 सराबों3 से भी हम हो गये होते
'''शब्दार्थ:
1.पूर्वज, 2.तृप्त, 3.मरीचिका
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