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मेरी भी आभा है इसमें / नागार्जुन
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00:47, 8 सितम्बर 2006
भीनी-भीनी खुशबूवाले
रंग-
विरंगे
बिरंगे
यह जो इतने फूल खिले हैं
अबकी यह खलिहाल भर गया
मेरी रग-रग के शोणित की
बूँदे
बूँदें
इसमें मुसकाती हैं
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घनश्याम चन्द्र गुप्त