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16:02, 13 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'
}}
[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
'''लेखन वर्ष: 2003
न रखो वह तस्वीरें हरी जिन से दिल दुखता हो
कर दो वह ज़मीनें बंजर जिन में घाव उगता हो
क्यों सीने में साँस लेवे दर्द किसी बेदर्द का
मिटा दो वह शोलए-दाग़ भी जिससे दिल जलता हो
लुत्फ़ लो उस बात में जिसमें न हो माज़ी की सदा
नोंच दो वह हर ख़ार जो उम्मीदों पर चुभता हो
रोशनी चाहिए हर क़दम पे हमें भी तुम्हें भी
जलाओ वह दिए किसलिए जिनसे धुँआ उठता हो
आँच बटोरो ग़म पी जाओ ज़ीस्त को जीना सीखो ‘वफ़ा’
क्यों जोड़ो उस ख़ाब के टुकड़े जो ख़ुद को छलता हो
'''शब्दार्थ:
जीस्त: जीवन
''नोट'': इस ग़ज़ल में विनय प्रजापति का दूसरा तख़ल्लुस 'वफ़ा' इस्तेमाल हुआ है।
</poem>