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राणाप्रताप के घोड़े से <br>
पड़ गया हवा का पाला था<br><br>
 
जो तनिक हवा से बाग हिली
 
लेकर सवार उड जाता था
 
राणा की पुतली फिरी नहीं
 
तब तक चेतक मुड जाता था
 
 
गिरता न कभी चेतक तन पर<br>
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर<br>
वह आसमान का घोड़ा था<br><br>
 
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
 
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
 
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
 
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं
 
निर्भीक गया वह ढालों में
 
सरपट दौडा करबालों में
 
फँस गया शत्रु की चालों में
 
*
 
 
बढते नद सा वह लहर गया<br>
भाला गिर गया गिरा निशंग<br>
हय टापों से खन गया अंग
 
बैरी समाज रह गया दंग <br>
घोड़े का ऐसा देख रंग<br><br>