|रचनाकार=श्यामनारायण पाण्डेय
}}
<poem>रणबीच चौकड़ी भर-भर कर<br>चेतक बन गया निराला था<br>राणाप्रताप के घोड़े से <br>पड़ गया हवा का पाला था<br><br>
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड जाता था
गिरता न कभी चेतक तन पर<br>राणाप्रताप का कोड़ा था<br>वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर<br>वह आसमान का घोड़ा था<br><br>
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में
*बढते नद सा वह लहर गयाफिर गया गया फिर ठहर गयाबिकराल बज्रमय बादल साअरि की सेना पर घहर गया।
बढते नद सा वह लहर गया<br>फिर गया गया फिर ठहर गया<br>बिकराल बज्रमय बादल सा<br>अरि की सेना पर घहर गया ।<br><br> भाला गिर गया गिरा निशंग<br>
हय टापों से खन गया अंग
बैरी समाज रह गया दंग <br>घोड़े का ऐसा देख रंग<br><br/poem>