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शिकायत बॉक्स / तुलसी रमण

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<poem>
कुछ इधर आते
कुछ उधर जाते
पहियों पर लोग
घूमता रहता पहिया
घुलमिल जाती दुनिया
परस्पर बेगाने होते लोग
पहिये में घूमता है
आदमी का अहम्
उसके लपकते हाथ और
सामान्य से कहीं ज़्यादा
खुला हुआ मुंह
पका हुआ कुंठा का विष-फल
चीखता रहता कंडक्टर
उंघता जाता ड्राइवर
गोद में शिकायत लेकर
कुहनियों पर सिर टिकाये
सो जाते लोग
कौन किसकी सुनता है
क्यों कौन किसे कहे
निहायत जरूरी होते हुए भी
गैर जरूरी होकर कितना वीरान है
शिकायत बॉक्स
सब ठीक चल रहा हो जैसे
तमाम शिकायतों के रहते भी
कितना भयानक है
बराबर खाली रहकर
इसका टंगा रहना
और सोये हुए लोगों पर
मुस्कुरा देना
</poem>
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