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19:22, 14 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसी रमण
|संग्रह=ढलान पर आदमी / तुलसी रमण
}}
<poem>
उस टीले से
दू...र, इस उतराई तक
तैरती लम्बी पुकार पर
खड़े हुए घाटी के स्तब्ध कान
टकरायी पर्दों से सूचना
शहर से आये
दो दूत
जिंदाबाद
मुर्दाबाद
गरज उठी गिरि-प्रांतर में
टकराहट की अनुगूँज तमात घाटी में
मच गया शोर
टूट गयी लय
लुट गया सपना
जो घाटी का अपना था
घाटी ढो रही है शोर शोर
जो इसे सौंपा गया है
</poem>