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लाशों पहाड़ के ढेर पर जिस्म का उमड़ पड़ते हैं छायाकार एक-एक टुकड़ा लाशों के गणित पूरे-पूरे दिन में व्यस्त नामानिगार तराशता आदमी और कुछ ताजा भय पसर जाता बना डालता है लाशों के छपे एक सीढ़ी चित्रों के साथ पत्थर की शहर बन्द रहेगा कई दूसरे प्रदेशों और शहरों पहाड़ के साथ जिस्म से हाजिर है वही समाचार एक बाल कहां से आता है समाचार पेड़ देवदार का उतारकर मस्तिस्क के किस कोने बैठ टुकड़ों-टुकड़ों में चीर-काट जाने कौन उगाता नक्काशी कर जोड़ता है समाचार एक सीढ़ी हर बस रोके जाने पर लक्कड़ की तैयार हो जाते हैं बच्चे अगले दिन के लिएकुछ डबल रोटियां कुछ अंडे और पापा पहाड़ की सिगरेट लाने के लिए खिड़कियों कठोर देह पर पर्दे लगा भीतर बन्द होता है शहर खरोंचे मार-मार बाहर खुला मंडराता बिछा देती है आदमी एक सीढ़ी पिशाच खेतों की पर्दे को जरा-सा उठा पत्थर, लक्कड़ और बार-बार देखते हैं बच्चे मिट्टी का अंतरंग कहीं कुछ भी तो नहीं पारदर्शी है सुनसान में कांपती एक चिड़िया के सिवा बाहर मत झांको बच्चों चुपचाप बैठे रहो भीतर उस कमरे में’पापा पहाड़ की जुबान ढलान पर नाचता है पिशाच आदमी बच्चे सरका देते हैं पर्दा किसी दूसरी खिड़की तलाश में उड़ जाती इस आदमी ने सोख रखी है चिड़िया बच्चों सयाले की आंखों बर्फ़ में डबडबाते हैं सवाल क्या होता है बन्द? कैसा होता है पिशाच? दबी आग और क्यों बाहर निकल उसे चैत में कूजे की डंडे से भगा नहीं आते पापा? खुशबू क्यों छोड़ देती हैं गाड़ियां समा गया है भीतर खाली सड़क उसके लिए? आषाढ़ की दोपहरी में क्यों डरते हैं लोग पिशाच से? ढलान पर रंभाती क्यों मारे जाते हैं वे गाय का गऊपन इस बन्द और धुंध के लिए? दबे कॉल-बैल पर उंगली पड़ते ही भीतर दन-दनाती है स्टेनगन आदमी सावनी पहाड़ के लिए नहीं बन्दूक के लिए खुलता है सीने से उतरतेशहर निर्झर का हर दरवाज़ा संगीत बन्दूक की नाली बूढ़े पहाड़ के नीचे थरथराता है भूखण्ड शीशों की खिड़कियों कंधों पर खेलता कपड़े के पर्दे सरका चढ़ता फिसलता बन्द होती है चिड़िया आज इक्कीस घोंसले और उजड़ गए फिर वही समाचार बड़ी संवेदना समाचारों में डूब बस पूरा हो जाता यह समाचार बन्दूक की आवाज सुनकर सयाले में पहले ही परदेस में उड़ी कितनी ही चिड़ियाँलौटती नहीं घोंसलों में चिड़ियाँ और स्थिति दी जाती है सामान्य करारढलान पर आदमी</poem>
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